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कविता

किधर है जाना ?

नमन जोशी


मैंने नहीं जाना किधर है जाना,

क्या डरती धरती के भूतल में जाना,

या जाना उधर जहाँ प्रेम,

झिल्ली में बिकता, और

खिल्ली में उड़ता

मैंने नहीं जाना किधर है जाना

क्या महकती बस्ती के छल में जाना,

या जाना उधर जहाँ रोदन,

पेट में गिरता, और

मिट्टी में चिरता

मैंने नहीं जाना किधर है जाना...

क्या बिकती बेशर्मी के पल में जाना,

या जाना उधर जहाँ सुख,

खरीदारी में मिलता,

और उधारी में बिकता,

मैंने नहीं जाना किधर है जाना,

क्या तपतपाती झीलों के जल में जाना,

या जाना उधर जहाँ कर्म,

क्रिया में हँसता,

और कर्ता में फँसता,

मैंने जाना ही नहीं किधर है जाना


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